हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक बिहार राज्य में सरकारी स्कूल में मात्र दो बच्चों पर तीन शिक्षक कार्यरत हैं। बिहार की हालत आज यह है कि 27 प्राथमिक विद्यालयों में 20 से भी कम बच्चे हैं। और यह हालात बिहार हि नही बल्कि पूरे देश की है। आज इस लेख में कुछ ऐसी ही जानकारी के बारे में बात करने वाले हैं-
एक स्कूल ऐसा भी जहां बच्चों से भी ज्यादा है शिक्षक
बिहार राज्य के भागलपुर जिले के जगदीशपुर प्रखंड का प्राथमिक विद्यालय कनेरी उर्दू में मात्र दो विद्यार्थियों के ही नामांकन है, और इन बच्चों को पढ़ने के लिए तीन शिक्षक लगे हुए हैं। इन बच्चों में एक बच्चा पहली कक्षा में और दूसरा बच्चा चौथी कक्षा में है। पहले एक ही बच्चे का नामांकन था और तीनों शिक्षक एक ही बच्चे को पढ़ाते थे लेकिन इस साल विद्यालय में एक और बच्चे का नामांकन हुआ है। इस विद्यालय में कुल मिलाकर चार कमरे हैं जिनमें से कुछ कमरों पर गांव वालों ने ताले लगा रखे हैं।
देश भर में स्कूलों के यही हालात हैं कहीं स्कूलों में विद्यार्थी नहीं है तो किसी स्कूल में शिक्षक ही नहीं है। एक शिक्षक जाने कितनी कक्षाओं को पढ़ाता है।
ऐसी ही एक घटना राजस्थान के डूंगरपुर में कुछ महीने पहले हुई थी, जिसमें एक सरकारी स्कूल की छत गिरने से कई विद्यार्थियों की मौत हो गई और कई सारे विद्यार्थी उसमें घायल भी हो गए थे।
बच्चों के नामांकन ने होने का कारण
इस विद्यालय में बच्चों के नामांकन न होने का सबसे बड़ा कारण धार्मिक मतभेद है। इसमें बड़े समुदाय के लोग अपने बच्चों का नामांकन नहीं करते और कुछ छोटे समुदाय के ही लोग अपने बच्चों को यहां भेजते हैं। बड़े समुदाय के लोग अपने बच्चों को दूसरे स्कूलों में गांव से बाहर तक भेजने को तैयार हैं।
स्कूल में पोषक क्षेत्र में टीम लगी जायजा
ऐसे स्कूल जहां 20 या 20 से कम छात्र हैं उनमें टीम सर्वे द्वारा जानकारी करेगी कि आखिर लोग अपने बच्चों का नामांकन क्यों नहीं करते हैं। डीपीओ ssa बबीता कुमारी ने बताया है कि कई जगह से सूचना मिली है कि स्कूलों में अध्यापक तो है परंतु बच्चे ही नहीं है।
सर्वे की रिपोर्ट आने के बाद बच्चों को स्कूलों से जोड़ने की पूरी कोशिश की जाएगी और उससे जुड़े कई कदम भी उठाई जाएंगे । इसके साथ ही अध्यापक और बच्चों का भी अनुपात बनाए रखने के लिए कई कदम उठा जाएंगे।

